महाकालेश्वर मंदिर: उज्जैन में भोलेनाथ के महाकाल कहलाने की वजह और इससे जुड़ी रोचक बातें
उज्जैन: एक प्राचीन धार्मिक नगरी
मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक शहर उज्जैन का नाम सुनते ही हर किसी के मन में बाबा महाकाल का भव्य मंदिर और कुंभ मेले की यादें ताजा हो जाती हैं। उज्जैन न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह धरती और आकाश के बीच स्थित होने के कारण खगोल शास्त्र में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बाबा महाकाल का यह मंदिर भगवान शिव (Lord Shiva) के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
पृथ्वी का केंद्र बिंदु है उज्जैन
क्या आप जानते हैं कि उज्जैन को धरती का केंद्र माना जाता है? खगोलशास्त्र के अनुसार, यह शहर धरती और आकाश (Earth and Sky) के बीच बिल्कुल सटीक स्थान पर स्थित है। इसे शास्त्रों में देश का “नाभि स्थल” कहा गया है। वराह पुराण में भी इसका उल्लेख है और इसे शरीर का नाभि स्थल बताया गया है, जहां बाबा महाकाल इसका संचालन करते हैं।
महाकाल नाम की उत्पत्ति
उज्जैन को काल-गणना का मुख्य केंद्र माना जाता है। इसका भौगोलिक स्थान (Geographic Location) (23.9° उत्तरी अक्षांश और 74.75° पूर्वी रेखांश) इसे खगोलीय दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। यहां कर्क रेखा और भूमध्य रेखा का संगम होता है। इसी वजह से यह स्थान काल-गणना और पंचांग निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। उज्जैन की काल-गणना की परंपरा के कारण भगवान शिव को “महाकाल” कहा जाता है।
दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग का महत्व
महाकाल मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में तीसरा ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह दक्षिणमुखी है, जो इसे तंत्र साधना के लिए अद्वितीय बनाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध किया था और अपने भक्तों की रक्षा के लिए इस स्थान पर विराजमान हुए। यह भी कहा जाता है कि यहां शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था।
मोक्ष की नगरी
महाकाल मंदिर के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। पुराणों में भी उल्लेख है कि इस पवित्र स्थल के दर्शन करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। मान्यता है कि यहां के शिवलिंग पर जल चढ़ाने से जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
विक्रम संवत का जन्मस्थल
उज्जैन को राजा विक्रमादित्य (Vikramaditya) के कारण भी जाना जाता है। उन्होंने यहां विक्रम संवत कैलेंडर की शुरुआत की, जो आज भी हिन्दू पंचांग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कैलेंडर व्रत-त्योहार और शुभ कार्यों के लिए समय निर्धारण में उपयोग किया जाता है।
सिंहस्थ कुंभ की महत्ता
उज्जैन को कुंभ मेले के चार स्थलों में से एक के रूप में चुना गया है। यहां हर 12 साल में सिंहस्थ कुंभ (Leo Aquarius) का आयोजन होता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। यही कारण है कि इसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है।
उज्जैन के अन्य नाम और मंदिर
उज्जैन को “शिप्रा नगरी” और “कालिदास की नगरी” के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्राचीन नामों में अवन्तिका, उज्जयिनी और कनकश्रन्गा (Avantika, Ujjaini and Kanakashranga) शामिल हैं। यहां कई प्रमुख मंदिर भी हैं, जैसे गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, गोपाल मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और काल भैरव मंदिर।
उज्जैन केवल एक धार्मिक नगरी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीता-जागता उदाहरण है। यह न केवल भगवान महाकाल के आशीर्वाद का स्थान है, बल्कि यह खगोलशास्त्र, इतिहास और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम भी है।