The Hindu God Stories

महादेव पुत्र कार्तिकेय जी ही क्यों माने जाते हैं देवताओं के सेनापति? आखिर कैसे हुआ उनका जन्म? जानें पूरी कहानी….

भगवान शिव, जिन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है, के दो पुत्र हैं—प्रथम गणेश, जिनकी पूजा सभी देवताओं से पहले की जाती है, और द्वितीय कार्तिकेय, जो आयु में गणेश जी से बड़े हैं। पुराणों में कार्तिकेय को देवताओं का प्रधान सेनापति माना गया है। उन्हें सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद (Subramanya, Murugan and Skanda) के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिकेय का जन्म पार्वती जी के गर्भ से नहीं हुआ था, बल्कि उनका अवतरण विशेष रूप से दैत्यों के नाश के लिए हुआ था।

Kartikeya
Kartikeya

कार्तिकेय के जन्म की कथा

स्कंद पुराण में कार्तिकेय के जन्म की विस्तृत कथा मिलती है। कथा के अनुसार, जब देवी सती ने आत्मदाह कर लिया था, तो भगवान शिव अत्यंत क्रोधित और व्याकुल (angry and upset) हो गए थे। उनके इस विकराल रूप के कारण संपूर्ण सृष्टि असंतुलित हो गई, और इसी समय दैत्यों ने इस स्थिति का लाभ उठाना शुरू कर दिया।

ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त एक दैत्य, तारकासुर, अजेय हो गया था। वह इतना शक्तिशाली हो गया कि देवता भी उससे भयभीत हो गए और वह सृष्टि पर अधर्म फैलाने लगा। इस विकट परिस्थिति में ब्रह्मा जी ने देवताओं को यह बताया कि तारकासुर का वध केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही संभव होगा।

महादेव और पार्वती का विवाह एवं कार्तिकेय का जन्म

इस भविष्यवाणी के बाद देवताओं ने भगवान शिव के विवाह की व्यवस्था करने का निर्णय लिया। कालांतर में महादेव का विवाह देवी पार्वती से हुआ। हालांकि, विवाह के बाद भी हजारों वर्षों तक उनकी कोई संतान नहीं हुई।

कुछ समय पश्चात, विशेष परिस्थितियों में षष्ठी तिथि को शिव जी से कार्तिकेय (Kartikeya) प्रकट हुए। वे छह मुखों के साथ जन्मे, और छह मुखों के कारण उन्होंने छह माताओं से स्तनपान किया। इसलिए वे षण्मुख (छः मुखों वाले) भी कहलाए।

कार्तिकेय बने देवताओं के सेनापति

कार्तिकेय के जन्म की जानकारी मिलते ही समस्त देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि तारकासुर का वध अविलंब किया जाए, क्योंकि वह संपूर्ण सृष्टि के लिए संकट बन चुका था।

भगवान शिव स्वयं युद्ध करने गए, परंतु तारकासुर को पराजित नहीं कर सके। तब महादेव ने अपने पुत्र कार्तिकेय का स्मरण किया।

कार्तिकेय अत्यंत तेजस्वी और अद्भुत योद्धा थे। जैसे ही वे युद्धभूमि में पहुंचे, दैत्यों में हाहाकार मच गया। तारकासुर अपनी समस्त शक्ति लगाकर भी कार्तिकेय का बाल भी बांका नहीं कर पाया। अंततः कार्तिकेय ने अपने दिव्य शक्ति से तारकासुर का वध कर दिया।

कार्तिकेय को सेनापति का पद प्राप्त हुआ

तारकासुर के संहार के पश्चात, देवताओं ने कार्तिकेय से प्रार्थना की कि वे देवसेना के सेनापति बनकर उनकी रक्षा करें। इस प्रकार, कार्तिकेय को देवताओं का प्रधान सेनापति बनाया गया और उन्हें उत्तर कुरु प्रदेश का अधिपति घोषित किया गया।

कार्तिकेय न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे ज्ञान, शक्ति और वीरता (Knowledge, Strength and Valor) के प्रतीक भी माने जाते हैं। उनका जन्म ही अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। इसी कारण वे देवताओं के सेनापति के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button