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यहां आधी रात प्रकट होती हैं माता! छोटी बच्ची बन भक्तों को देती हैं दर्शन

बीकानेर: बीकानेर अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहां एक अनोखी रम्मत (Rammat) होती है, जिसमें भाग लेने के लिए हजारों लोग पहले से ही इकट्ठे हो जाते हैं। इस आयोजन से पहले यहां के लोग माता आशापुरा की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। हम बात कर रहे हैं बिस्सो के चौक में होने वाली ऐतिहासिक रम्मत की।

Rammat
Rammat

यहां हर साल रम्मत से पहले आधी रात को माता आशापुरा बाल स्वरूप में प्रकट होती हैं और भक्तों को दर्शन देती हैं। इस दिव्य दर्शन के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ता है। रम्मत के समय बिस्सा चौक को दुल्हन की तरह सजाया जाता है, और यहां मेले जैसा माहौल रहता है। घरों की छतों पर बड़ी संख्या में महिलाएं एकत्र होकर इस भव्य आयोजन का आनंद लेती हैं।

200 से 300 साल पुरानी परंपरा

रम्मत से जुड़े इंद्र कुमार बिस्सा ने लोकल 18 को बताया कि बिस्सो का चौक में होने वाली यह रम्मत परंपरा 200 से 300 साल पुरानी है। इस आयोजन में एक वर्ष भक्त पूरणमल की रम्मत होती है, तो दूसरे वर्ष नौटंकी शहजादी की रम्मत का आयोजन किया जाता है।

रम्मत का आयोजन रात 1 बजे से सुबह 10 बजे तक यानी पूरे 9 घंटे तक चलता है। मान्यता है कि रम्मत से पहले माता आशापुरा को प्रसन्न किया जाता है, जिसके बाद वे स्वयं यहां आकर भक्तों को दर्शन देती हैं।

इस दौरान माता बाल स्वरूप में प्रकट होती हैं और पूरा एक घंटा शहरवासियों को दर्शन देती हैं। भक्त उनकी एक झलक पाने के लिए लालायित रहते हैं और माता को प्रसाद अर्पित करने के साथ-साथ साड़ी भी उड़ाते हैं।

हर साल हजारों की संख्या में भक्त इस चमत्कारी दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। आशापुरा माता का आगमन रात 12 बजे होता है, और वे रात 1 बजे तक भक्तों को दर्शन देती हैं।

मंत्रोच्चार से पैर के अंगूठे की पूजा

माता आशापुरा के बाल स्वरूप का चयन भी विशेष प्रक्रिया के तहत किया जाता है। इस भूमिका के लिए 10 से 12 वर्ष की आयु के बालक का चयन किया जाता है, जो न केवल सुंदर बल्कि शारीरिक रूप से भी स्वस्थ होता है।

इस दौरान बाल स्वरूप को सोने के गहनों से सजाया जाता है। उसे पहनाए जाने वाले आभूषणों में—

गलपटिया (गले का हार)
बाजूबंद
कमरबंद
चंद्रहार

हाथों में विशेष आभूषण शामिल होते हैं।

इस बाल स्वरूप की वैदिक मंत्रोच्चार (Vedic Chanting) के साथ पैर के अंगूठे की विशेष पूजा की जाती है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब यह बाल स्वरूप माता का रूप धारण करता है, तो उसमें माता आशापुरा का साक्षात आगमन होता है। इस समय भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है।

इस दिव्य दर्शन के दौरान भक्त बाल स्वरूप के चरण स्पर्श करने के लिए उत्साहित रहते हैं। इस अवसर पर गायक और श्रद्धालु भक्ति गीतों के माध्यम से माता की स्तुति करते हैं। विशेष रूप से “बनो सहायक छन्द बनाने में, करो आशापुरा आनंद शहर बिकाणे में” भजन गाया जाता है।

माता आशापुरा से पूरे बीकानेर शहर की सुख-शांति और समृद्धि (Peace and prosperity) की प्रार्थना की जाती है।

कैसे होता है बाल स्वरूप का चयन?

इंद्र कुमार बिस्सा ने बताया कि इस आयोजन के लिए विशेष रूप से बच्चों का चयन किया जाता है। इस प्रक्रिया में 4 से 5 बच्चों को एक स्थान पर एकत्र किया जाता है और उनमें से एक को माता के बाल स्वरूप के रूप में चुना जाता है।

इस ऐतिहासिक परंपरा को देखने के लिए हजारों भक्त उमड़ते हैं, जिससे बिस्सा चौक आस्था और भक्ति (Faith and devotion) का केंद्र बन जाता है। माता आशापुरा के दिव्य दर्शन का यह उत्सव बीकानेर की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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