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51 Shakti Peeth: किस-किस जगह गिरे थे माता सती के अंग, जो अब बन गए शक्तिपीठ, जानें पूरी कहानी

माता सती के 51 शक्तिपीठ: पौराणिक कथा और महत्व

हिंदू धर्म में जिस प्रकार चार धाम यात्रा और भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का विशेष महत्व है, उसी तरह माता सती के 51 शक्तिपीठ भी अत्यंत पावन माने जाते हैं। शास्त्रों और पुराणों में इन शक्तिपीठों का विस्तार से वर्णन मिलता है। देवी पुराण (Devi Purana) के अनुसार, ये शक्तिपीठ न केवल भारत में बल्कि आसपास के देशों में भी स्थित हैं। माता सती के इन शक्तिपीठों की स्थापना की कथा भगवान शंकर, माता सती, उनके पिता दक्ष प्रजापति और भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है।

51 shakti peeth

हालांकि 51 शक्तिपीठों का मुख्य रूप से उल्लेख किया जाता है, लेकिन तंत्र चूड़ामणि ग्रंथ (Tantra Chudamani Granth) में 52 शक्तिपीठों का भी वर्णन किया गया है। प्रत्येक शक्तिपीठ वह स्थान है, जहां माता सती के शरीर के अंग, आभूषण या वस्त्र गिरे थे।

माता सती के 51 शक्तिपीठों की उत्पत्ति कैसे हुई?

पौराणिक कथा के अनुसार, माता सती भगवान शिव की पहली पत्नी थीं। उनके पिता दक्ष प्रजापति ने एक बार कनखल (हरिद्वार) में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र (Brahma, Vishnu, Indra) समेत सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। माता सती को जब इस बात की जानकारी मिली तो वे स्वयं अपने पति शिवजी से अनुमति लेकर यज्ञ में पहुंचीं।

जब माता सती ने अपने पिता से भगवान शिव को न बुलाने का कारण पूछा, तो दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान कर दिया। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण माता सती ने उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने माता सती के शरीर को उठाकर तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया। उनके क्रोध से संपूर्ण सृष्टि में प्रलय का संकट छा गया।

सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जहां-जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों (Shakti Peethas) की स्थापना हुई। इन कुल 51 शक्तिपीठों की हिंदू धर्म में अत्यधिक महिमा है।

माता सती के 51 शक्तिपीठों के नाम और स्थान

शक्तिपीठ का नाम स्थान गिरा हुआ अंग
देवी बाहुला वर्धमान, पश्चिम बंगाल बायां हाथ
मंगल चंद्रिका वर्धमान, पश्चिम बंगाल दाईं कलाई
भ्रामरी देवी जलपाइगुड़ी, पश्चिम बंगाल बायां पैर
जुगाड्या वर्धमान, पश्चिम बंगाल दाएं पैर का अंगूठा
माता कालिका कालीघाट, कोलकाता बाएं पैर का अंगूठा
महिषमर्दिनी बीरभूम, पश्चिम बंगाल भ्रूण
देवगर्भ बीरभूम, पश्चिम बंगाल अस्थियां
देवी कपालिनी पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल बायीं एड़ी
फुल्लरा बीरभूम, पश्चिम बंगाल ओष्ठ (होंठ)
अवंति उज्जैन, मध्य प्रदेश ऊपरी होंठ
नंदिनी बीरभूम, पश्चिम बंगाल गले का हार
देवी कुमारी रत्नाकर नदी, पश्चिम बंगाल दायां कंधा
देवी उमा भारत-नेपाल बॉर्डर बायां कंधा
कालिका देवी बीरभूम, पश्चिम बंगाल पैर की हड्डी
विमला जी मुर्शिदाबाद, बांग्लादेश माथे का मुकुट
मां भवानी चिट्टागौंग, बांग्लादेश दायीं भुजा
सुनंदा बरिसल, बांग्लादेश नाक
देवोत्सव जयंतिया परगना, बांग्लादेश बायीं जांघ
महालक्ष्मी देवी जैनपुर, बांग्लादेश गला
योगेश्वरी खुलना, बांग्लादेश हाथ और पैर
अर्पण भवानीपुर, बांग्लादेश बाएं पैर की पायल
इन्द्रक्षी श्रीलंका दाएं पैर की पायल
मां ललिता प्रयागराज, उत्तर प्रदेश हाथ की अंगुली
मणकर्णी वाराणसी, उत्तर प्रदेश कान की मणि
देवी शिवानी चित्रकूट, उत्तर प्रदेश दायां वक्ष
चूड़ामणि वृंदावन, उत्तर प्रदेश केश की चूड़ामणि
श्रावणि तमिलनाडु पीठ
सावित्री कुरुक्षेत्र, हरियाणा एड़ी
देवी गायत्री अजमेर, राजस्थान कलाई
मां काली अमरकंटक, मध्य प्रदेश बायां नितंब
देवीनर्मदा नर्मदा नदी तट, मध्य प्रदेश दायां नितंब
देवी नारायणी कन्याकुमारी, तमिलनाडु ऊपरी दाढ़
वाराही गोंडा, उत्तर प्रदेश निचली दाढ़
श्री सुंदरी श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश दाएं पैर की पायल
चंद्रभागा जूनागढ़, गुजरात अमाशय
भ्रामरी देवी नासिक, महाराष्ट्र ठोड़ी
राकिनी देवी कोटिलिंगशेवर, आंध्र प्रदेश गाल
देवी अंबि भरतपुर, राजस्थान बायां पैर की उंगली
महाशिरा पशुपतिनाथ, नेपाल दोनों घुटने
गण्डकी चंडी पोखरा, नेपाल मस्तक
जयदुर्गा कर्नाटक दोनों कान
कोट्टरी बलूचिस्तान, पाकिस्तान सिर
महिष मर्दिनी नैना देवी, हिमाचल प्रदेश आंखें
देवी अंबिका कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश जीभ
देवी महामाया अमरनाथ, कश्मीर गला
त्रिपुरमालिनी जालंधर, पंजाब दायां वक्ष
माता अंबाजी अंबाजी, गुजरात ह्रदय
मां दाक्षायनी कैलाश पर्वत, तिब्बत दायां हाथ
देवी विमला भुवनेश्वर, उड़ीसा नाभि
त्रिपुर सुंदरी त्रिपुरा दायां पैर
कामाख्या देवी गुवाहाटी, असम योनि

माता सती के 51 शक्तिपीठ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी एक अहम हिस्सा हैं। ये स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र हैं और देवी शक्ति की अपार महिमा को दर्शाते हैं।

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