रावण क्यों बना राक्षस? किसने रावण को दिया था श्राप, जानें पूरी कहानी
रावण के पूर्व जन्म की कथा
दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष (Darker Fortnight) की दशमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में इसी दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था और माता सीता को उसके चंगुल से मुक्त कराया था। इसलिए यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।
रावण को एक महान विद्वान और शक्तिशाली योद्धा माना जाता था, लेकिन उसके अहंकार ने ही उसके विनाश का कारण बना। आमतौर पर लोग रावण को सिर्फ राक्षस के रूप में जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वह अपने पूर्व जन्म में राक्षस नहीं था। धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं (Mythological Beliefs) के अनुसार, रावण के पिछले जन्मों में उसके राक्षस योनि में जन्म लेने का एक कारण था। आइए जानते हैं, आखिर रावण ने अपने पूर्व जन्मों में कौन-कौन से रूप धारण किए थे और उसे यह श्राप किस वजह से मिला था।
जय-विजय को मिला था राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जय और विजय नाम के दो द्वारपाल भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम (Baikunth Dham) के प्रवेश द्वार पर सेवा में नियुक्त थे। वे हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे और किसी को भी बिना अनुमति बैकुंठ में प्रवेश नहीं करने देते थे।
एक दिन सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार (सनकादि मुनि) भगवान विष्णु के दर्शन करने बैकुंठ धाम पहुंचे। जब वे द्वार पर पहुंचे, तो जय-विजय ने उन्हें रोक दिया और बिना अनुमति भीतर जाने से मना कर दिया।
इससे सनकादि मुनियों को बहुत क्रोध आ गया और उन्होंने जय-विजय को श्राप दे दिया, “तुम दोनों अहंकार से भर गए हो, इसलिए तुम्हें राक्षस योनि में जन्म लेना होगा।”
जब यह बात भगवान विष्णु को पता चली, तो वे तुरंत वहां पहुंचे और मुनियों से अपने द्वारपालों को क्षमा करने की विनती की। लेकिन सनकादि मुनियों ने कहा, “हमारा श्राप अटल है, लेकिन एक उपाय है। यदि जय-विजय तीन जन्म तक भगवान विष्णु के ही हाथों मृत्यु को प्राप्त करें, तो वे वापस बैकुंठ लौट सकते हैं।”
भगवान विष्णु के आदेश के अनुसार, जय-विजय को राक्षस योनि में तीन बार जन्म लेना पड़ा और हर जन्म में स्वयं भगवान विष्णु ने उनका वध किया।
पहला जन्म: हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में
श्राप के कारण जय-विजय ने अपने पहले जन्म में दैत्य हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु (Hiranyaksha and Hiranyakshipu) के रूप में जन्म लिया। हिरण्याक्ष बहुत ही शक्तिशाली असुर था। उसने अपने बल से संपूर्ण पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था, जिससे चारों ओर अंधकार छा गया था। तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण किया और हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को पुनः समुद्र से निकालकर अपने स्थान पर स्थापित किया। अपने भाई हिरण्याक्ष की मृत्यु से क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने ब्रह्माजी से अमर होने का वरदान मांगा। उसने यह वरदान मांगा कि उसे न तो कोई देवता मार सके, न मनुष्य, न पशु, न दिन में मारा जाए, न रात में, न घर में मरे, न बाहर, न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह अजेय बन गया और स्वयं को ईश्वर मानने लगा। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को भी भगवान विष्णु की भक्ति से रोकने का प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद विष्णु का सच्चा भक्त था। तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का संहार किया। उन्होंने न ही दिन में मारा, न रात में, न घर के अंदर, न बाहर, न किसी अस्त्र से और न ही शस्त्र से—बल्कि अपने नाखूनों से उसका वध कर दिया। इस प्रकार, जय-विजय का पहला जन्म समाप्त हुआ और वे फिर से दूसरे जन्म के लिए तैयार हुए।
दूसरा जन्म: रावण और कुंभकर्ण के रूप में
अपने दूसरे जन्म में जय-विजय ने राक्षस योनि में जन्म लिया और रावण व कुंभकर्ण बने। रावण लंका का राजा बना और उसे वरदान में बहुत सारी शक्तियां प्राप्त हुईं। उसने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और अनेक वरदान प्राप्त किए। कुंभकर्ण (Kumbhakarana) इतना विशाल था कि वह हजारों मनुष्यों को पलभर में खा सकता था। उसे भी देवताओं के भय से गहरी नींद का वरदान दिया गया था, ताकि वह अधिक समय तक जागकर विनाश न कर सके।
इस जन्म में भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया और रावण का वध कर उसे उसके पापों से मुक्त किया।
रावण का वध श्रीराम के हाथों होना तय था, क्योंकि यह जय-विजय को मिले श्राप का ही परिणाम था।
तीसरा जन्म: शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में
तीसरे जन्म में जय-विजय ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लिया। शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था, लेकिन जन्म से ही उसमें भगवान कृष्ण (Lord Krishna) के प्रति द्वेष की भावना थी। शिशुपाल ने श्रीकृष्ण के विरुद्ध कई बार अपशब्द कहे और पांडवों के राजसूय यज्ञ में उनका अपमान किया। जब शिशुपाल ने 100 अपशब्द पूरे कर लिए, तब भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। इसी तरह, दंतवक्र भी भगवान कृष्ण का शत्रु था और अंततः उसने भी भगवान कृष्ण के हाथों ही मृत्यु पाई।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. जय-विजय को राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप क्यों मिला?
सनकादि मुनियों को बैकुंठ धाम में प्रवेश से रोकने के कारण जय-विजय को यह श्राप मिला था।
2. जय-विजय के पहले जन्म में वे कौन थे?
पहले जन्म में जय-विजय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में जन्मे थे।
3. जय-विजय का दूसरा जन्म कौन था?
दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण और कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया था।
4. जय-विजय का तीसरा जन्म किस रूप में हुआ?
तीसरे जन्म में वे शिशुपाल और दंतवक्र बने थे।
5. जय-विजय की आत्मा को मुक्ति कैसे मिली?
तीन जन्मों के बाद भगवान विष्णु के हाथों मृत्यु प्राप्त कर वे पुनः बैकुंठ धाम लौट गए।