The Hindu Temple

Lingaraj Temple: इस मंदिर में शिव के हृदय में बसते हैं भगवान विष्णु

Lingaraj Temple: भारत में कई अद्भुत और चमत्कारिक मंदिर हैं, जिनमें से हर एक की अपनी अलग विशेषता और महत्व है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल (Historical and Religious Sites) है ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर। यह मंदिर न केवल भुवनेश्वर का सबसे पुराना मंदिर है, बल्कि भारतीय संस्कृति और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण भी है।

लिंगराज मंदिर का महत्व

लिंगराज मंदिर हिंदू धर्म के आराध्य देव भगवान शिव के एक विशेष रूप हरिहर को समर्पित है। हरिहर का अर्थ है “हरि” यानी भगवान विष्णु और “हर” यानी भगवान शिव। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां शिव और विष्णु का एक साथ वास है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग के अंदर भगवान विष्णु शालिग्राम (Lord Vishnu Shaligram) रूप में विराजमान हैं।

Lingraj temple
Lingraj temple

लिंगराज मंदिर की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती से भुवनेश्वर शहर की सुंदरता का वर्णन किया। माता पार्वती ने इसे देखने की इच्छा प्रकट की और गाय का रूप धारण कर भुवनेश्वर की खोज में निकल पड़ीं। इस दौरान दो राक्षस, लिट्टी और वसा, उनके पीछे पड़ गए और शादी का प्रस्ताव रखा। माता पार्वती ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, लेकिन राक्षस उनका पीछा करते रहे। आखिरकार, माता ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया।

इसके बाद, जब माता को प्यास लगी, तो भगवान शिव ने प्रकट होकर एक कुएं का निर्माण किया और सभी पवित्र नदियों का आह्वान किया। यहीं बिंदुसागर सरोवर का निर्माण हुआ, और भुवनेश्वर शहर अस्तित्व में आया। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती (Lord Shiva and Mother Parvati) ने लंबे समय तक इस स्थान पर निवास किया।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

इतिहासकारों के अनुसार, लिंगराज मंदिर का निर्माण कार्य 6वीं शताब्दी में राजा ललाट इंदु केसरी ने शुरू करवाया था। मौजूदा भव्य संरचना को सोमवंशी राजा जजाति केसरी ने 11वीं शताब्दी में बनवाया। ब्रह्म पुराण (Brahma Purana) में इस स्थान को एकाम्र क्षेत्र कहा गया है। मंदिर के कुछ हिस्से 1400 वर्षों से भी अधिक पुराने हैं, और इसका उल्लेख 6वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी मिलता है।

लिंगराज मंदिर की वास्तुकला

लिंगराज मंदिर की वास्तुकला अद्भुत और आकर्षक है। यह मंदिर कलिंग वास्तुकला और उड़ीसा शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का शिखर लगभग 180 फुट ऊंचा है, और इसके अंदर लगभग 50 छोटे-छोटे मंदिर हैं।

मंदिर के चार मुख्य भाग

मुख्य मंदिर
यज्ञशाला
भोग मंडप
नाट्यशाला

मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार है, और इसमें हर दीवार पर बारीक नक्काशी की गई है। मंदिर के प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर हैं, जबकि अन्य द्वार उत्तर और दक्षिण में स्थित हैं।

विशेष पूजा पद्धतियां

लिंगराज मंदिर में पूजा की परंपराएं भी अनोखी हैं। दर्शन करने से पहले भक्त बिंदु सरोवर में स्नान करते हैं। इसके बाद क्षेत्रपति अनंत वासुदेव, गणेश और नंदी की पूजा करते हैं। मुख्य गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग करीब 8 फुट मोटा और 1 फुट ऊंचा है। इसकी खासियत यह है कि इसके बीच में चांदी का शालिग्राम स्थापित है, जो भगवान विष्णु का प्रतीक है।

यहां शिव और विष्णु की पूजा एक साथ होती है, जिसके कारण यहां तुलसी और आक के फूल दोनों चढ़ाए जाते हैं। यह परंपरा लिंगराज मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाती है।

मंदिर से जुड़े विशेष त्योहार

लिंगराज मंदिर में कई विशेष उत्सव मनाए जाते हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है महाशिवरात्रि। इस दिन लाखों श्रद्धालु यहां एकत्रित होते हैं। महाशिवरात्रि पर रात के समय मंदिर के शिखर पर महादीप प्रज्ज्वलित किया जाता है।

चंदन उत्सव

चंदन उत्सव (Sandalwood Festival) यहां का एक और प्रमुख पर्व है, जो 22 दिनों तक चलता है। अप्रैल महीने में आयोजित होने वाली रथयात्रा भी मंदिर की विशेष पहचान है।

गैर-हिंदुओं के लिए प्रवेश व्यवस्था

लिंगराज मंदिर में गैर-हिंदुओं (Non-Hindus) को प्रवेश की अनुमति नहीं है। हालांकि, मंदिर के पास एक ऊंचा चबूतरा बनाया गया है, जहां से अन्य धर्मों के लोग इस भव्य मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

मंदिर का जल और इसका महत्व

मंदिर से बहने वाली एक पवित्र नदी का पानी बिंदु सागर टैंक में भरता है। मान्यता है कि इस पानी से स्नान करने से मानसिक और शारीरिक (Mental and Physical) रोगों का नाश होता है। इसे भक्त अमृत मानते हैं और पवित्र अवसरों पर इसका सेवन करते हैं।

लिंगराज मंदिर की महिमा

मंदिर की दिव्यता और महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां प्रतिदिन करीब 6 हजार श्रद्धालु दर्शन (Devotee Darshan) करने आते हैं। महाशिवरात्रि और रथयात्रा के दौरान यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है।

FAQs

लिंगराज मंदिर किस देवता को समर्पित है?
यह मंदिर भगवान शिव और विष्णु के हरिहर रूप को समर्पित है।

मंदिर की वास्तुकला की खासियत क्या है?
यह कलिंग शैली और उड़ीसा वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें बारीक नक्काशी और भव्य शिखर है।

बिंदु सागर सरोवर का महत्व क्या है?
बिंदु सागर का पानी पवित्र माना जाता है, और यह मानसिक व शारीरिक रोगों का नाश करता है।

गैर-हिंदू लोग मंदिर के दर्शन कैसे कर सकते हैं?
गैर-हिंदुओं के लिए मंदिर के पास एक चबूतरा है, जहां से वे मंदिर देख सकते हैं।

लिंगराज मंदिर में कौन-कौन से प्रमुख उत्सव मनाए जाते हैं?
महाशिवरात्रि, चंदन उत्सव, और रथयात्रा यहां के प्रमुख उत्सव हैं।

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